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    दुनियां से बात करने के लिये फोन की जरूरत होती है। और अल्लाह से बात करने के लिये नमाज़ की जरूरत होती है।।

    फोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है , और अल्लाह से बात करने पर नमाज़ में दिल लगाना पड़ता है।

    “दुनिया ” को चाहने वाला,

    “बिखर” जाता है.

    ” अल्लाह को चाहने वाला,

    “निखर” जाता है.
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        Anish Arora
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          कुछ ऐसे प्रश्न, जो कि अक्सर पूछे जाते हैं:

          प्रश्नः
          यद्यपि इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है परन्तु मुसलमान काबे की पूजा क्यों करते हैं? और अपनी नमाज़ों के दौरान उसके सामने क्यों झुकते हैं?

          जवाबः
          काबा हमारे लिये किष्बला (श्रद्धेय स्थान, दिशा) है, अर्थात वह दिशा जिसकी ओर मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं। यह बात ध्यान देने योग्य है कि, मुसलमान नमाज़ के समय काबे की पूजा नहीं करते, मुसलमान केवल अल्लाह की इबादत करते हैं और उसी के आगे झुकते हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन की सूरह अल-बकष्रः में अल्लाह का फ़रमान हैः

          ‘‘हे नबी! यह तुम्हारे मुँह का बार-बार आसमान की तरफ़ उठना हम देख रहे है, लो हम उसी किष्बले की तरफ़ तुम्हें फेर देते हैं जिसे तुम पसन्द करते हो। मस्जिदुल हराम (काबा) की तरफ़ रुख़ फेर दो, अब तुम जहाँ कहीं हो उसी तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ा करो।’’ (पवित्र क़ुरआन , 2:144)

          इस्लाम एकता और सौहार्द के विकास में विश्वास रखता है
          जैसे, यदि मुसलमान नमाज़ पढ़ना चाहें तो बहुत सम्भव है कि कुछ लोग उत्तर की दिशा की ओर मुँह करना चाहें, कुछ दक्षिण की ओर, तो कुछ पूर्व अथवा पश्चिम की ओर, अतः एक सच्चे ईश्वर (अल्लाह) की उपासना के अवसर पर मुसलमानों में एकता और सर्वसम्मति के लिए उन्हें यह आदेश दिया गया कि वह विश्व मे जहाँ कहीं भी हों, जब अल्लाह की उपासना (नमाज़) करें तो एक ही दिशा में रुख़ करना होगा। यदि मुसलमान काबा की पूर्व दिशा की ओर रहते हैं तो पश्चिम की ओर रुख़ करना होगा। अर्थात जिस देश से काबा जिस दिशा में हो उस देश से मुसलमान काबा की ओर ही मुँह करके नमाज़ अदा करें।

          पवित्र काबा धरती के नक़्शे का केंद्र है
          विश्व का पहला नक्शा मुसलमानों ने ही तैयार किया था। मुसलमानों द्वारा बनाए गए नक़शे में दक्षिण ऊपर की ओर और उत्तर नीचे होता था। काबा उसके केंद्र में था। बाद में भूगोल शास्त्रियों ने जब नक़शे बनाए तो उसमें परिवर्तन करके उत्तर को ऊपर तथा दक्षिण को नीचे कर दिया। परन्तु अलहम्दो लिल्लाह (समस्त प्रशंसा केवल अल्लाह के लिए है) तब भी काबा विश्व के केंद्र में ही रहा।

          काबा शरीफ़ का तवाफ़ (परिक्रमा) अल्लाह के एकेश्वरत्व का प्रदर्शन है
          जब मुसलमान मक्का की मस्जिदे हराम में जाते हैं, वे काबा का तवाफ़ करते हैं अथवा उसके गिर्द चक्कर लगाकर परिक्रमा करते हैं तो उनका यह कृत्य एक मात्र अल्लह पर विश्वास और उसी की उपासना का प्रतीक है क्योंकि जिस प्रकार किसी वृत्त (दायरे) का केंद्र बिन्दु एक ही होता है उसी प्रकार अल्लाह भी एकमात्र है जो उपासना के योग्य है।

          हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस सही बुख़ारी, खण्ड 2, किताब हज्ज, अध्याय 56 में वर्णित हदीस नॉ 675 के अनुसार हज़रत उमर (रज़ियल्लाह अन्हु) ने काबा में रखे हुए काले रंग के पत्थर (पवित्र हज्र-ए- अस्वद) को सम्बोधित करते हुए फ़रमायाः

          ‘‘मैं जानता हूँ कि तू एक पत्थर है जो किसी को हानि अथवा लाभ नहीं पहुंचा सकता। यदि मैंने हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को चूमते हुए नहीं देखा होता तो मैं भी तुझे न छूता (और न ही चूमता)।’’

          (इस हदीस से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि विधर्मियों की धारणा और उनके द्वारा फैलाई गई यह भ्रांति पूर्णतया निराधार है कि मुसलमान काबा अथवा हज्र-ए-अस्वद की पूजा करते हैं। किसी वस्तु को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखना उसकी पूजा करना नहीं हो सकता।)

          लोगों ने काबे की छत पर खड़े होकर अज़ान दी
          महान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में लोग काबे के ऊपर चढ़कर अज़ान भी दिया करते थे, अब ज़रा उनसे पूछिए जो मुसलमानों पर काबे की पूजा का आरोप लगाते हैं कि क्या कोई मूर्ति पूजक कभी अपने देवता की पूजी जाने वाली मूर्ति के ऊपर खड़ा होता है ?
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            कुछ ख़ास शब्दों के मायने और क़ुरान की रोशनी में.........

            गन्ज बख्श - इसके माने हैं खजाने बख्शने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            "और आसमान व ज़मीन के खज़ाने अल्लाह की ही मिल्कियत हैं| (सूरह मुनफ़िकून 63/7)

            बेशक अल्लाह ताला जिसे चाहता हैं बेशुमार रोज़ी देता हैं| (सूरह अल इमरान 3/37)

            गौसे आज़म - इसके माने हैं सबसे बड़ा फ़रियाद सुनने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            बेकस की पुकार को जबकि वो पुकारे, कौन कबूल करके सख्ती को दूर कर देता हैं? और तुम्हे ज़मीन मे खलीफ़ा बनाया हैं, क्या अल्लाह के सिवा और भी माबूद हैं? (सूरह नमल 27/62)

            गरीब/बन्दा नवाज़ - इसके माने हैं गरीबो/बन्दो को नवाज़ने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            "ऐ लोगो तुम सब अल्लाह के मोहताज हो और अल्लाह बेनियाज़ खूबियो वाला हैं| (सूरह फ़ातिर 35/15)

            मुश्किलकुशा - इसके माने हैं तमाम मुशकिलो को दूर करने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            "और अगर तुझ को अल्लाह ताला कोई तकलीफ़ पहुंचाये तो इसको दूर करने वाला सिवाये अल्लाह ताला के और कोई नही| और अगर तुझ को कोई फ़ायदा पहुंचाना चाहे तो वो हर चीज़ पर कुदरत रखता हैं| (सूरह अनआम 6/17)

            दाता - इसके माने हैं सबकुछ देने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            "जिसे चाहता हैं बेटिया देता हैं जिसे चाहता हैं बेटे देता हैं| या इन्हे जमा कर देता हैं बेटे भी बेटिया भी और जिसे चाहता हैं बांझ कर देता हैं| (सूरह शूअरा 42/49, 50)

            दस्तगीर - इसके माने हैं मुसीबत के वक्त थामने वाला| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
            "और जब इन्सान को कोई तकलीफ़ पहुंचती हैं तो हम को पुकारता हैं लेटे भी, बैठे भी, खड़े भी| फ़िर जब हम इसकी तकलीफ़ इससे हटा देते हैं तो वो ऐसा हो जाता हैं के इसने अपनी तकलीफ़ के लिये जो इसे पहुंची थी हमे कभी पुकारा ही न था| (सूरह युनुस 10/12)
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              हजरत मोहम्मद सल्ल० : एक दिव्य आत्मा

              सत्य और नेकी के फरिश्ते

              हजरत मोहम्मद साहब की गणना उन महापुरुषों में होती है, जिन्होंने मानव मूल्यों के लिए एक नए इतिहास की रचना की। उसे एक नई दिशा व नया आयाम दिया। एक आदर्श समाज की स्थापना की, जिसमें अनेक कबीलों और जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के समान अधिकारों के साथ रह सकें और सम्मानित जीवन व्यतीत कर सकें।
              हजरत मोहम्मद (सल्ल.) ने अपने अनुकरणीय व्यक्तित्व द्वारा धार्मिक, भौतिक एवं सांसारिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। उनके 23 सालों के अलौकिक जीवन की एक-एक बात, एक-एक कर्म, चरित्र एवं आचरण की व्याख्या, उनकी शिक्षा, आदेश और फरमानों का विवरण प्रमाणिकता के साथ कुरआन, हदीस जीवनी में संकलित है।
              बचपन से ही उनके भीतर ये सभी दिव्य विशेषताएँ मौजूद थीं। 12 रबीउल अव्वल, सोमवार को सन 571 ई. में कुरैश वंश में उनका जन्म हुआ। जिस परिवेश में उनका जन्म हुआ तब का तत्कालीन समाज अत्यंत अधर्मी और दुष्ट था।
              कबीले के लोग आपस में लड़ाई-झगडे़ करते थे। एक व्यापारी कबीला दूसरे व्यापारी का माल हड़पने और वादे तोड़ने में यकीन रखता था। इन बर्बर समाज के बीच हजरत एक ऐसे शांतिप्रिय व्यक्ति थे, जिन्हें ये हिंसा और अन्याय देखकर दुख होता था। वे अपने कबीलों की लड़ाइयों में मेल-जोल कराने में हमेशा आगे रहते थे। कई बार शांति की तलाश में वे 'गारे हिरा' तशरीफ से जाते, वहीं उन्हें अंतत: ईश्वरीय प्रेरणा की प्राप्ति हुई।
              हजरत मोहम्मद 12 वर्ष की अल्पायु से ही व्यापारिक कार्य में अपने चाचा का हाथ बँटाने लगे थे। जब कुछ बडे़ हुए तो दूसरों का माल लेकर सीरिया जाने लगे। लेन-देन में वे इतने सच्चे और खरे थे कि लोग उन्हें मोहम्मद सादिक (सत्यवादी) पुकारा करते थे।
              दुश्मन तक अपना कीमती माल उनके पास रखवाते थे। उन्होंने कभी किसी का हक नहीं मारा। किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया। कभी किसी से कड़वी बात नहीं की। जिन लोगों से भी उनके संबंध होते, वे सब उनकी ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास रखते थे।
              40 वर्ष की आयु में अल्लाहतआला ने उन पर ईशदूत का दायित्व सौंपा और 23 सालों में उन पर कुरआन अवतरित किया। कुरआन अवतरण के साथ जब उन्होंने नए धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया तो कबीले के लोगों ने उनका घोर विरोध किया और उन पर तरह-तरह के अत्याचार किए।
              लगातार तेरह वर्ष तक उन पर अत्याचार होते रहे। तब वे मक्का से हिजरत करके मदीना चले गए और ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाते रहे। हजरत मोहम्मद का पवित्र संदेश था कि दुनिया में इंसान परिवारों, कबीलों, नस्लों और कौमों में बँटे हुए जरूर हैं और इनके बीच और भी मतभेद हैं। लेकिन सारे संसार के इंसान एक ही हैं, इनके बीच जो विभेद हैं वे अवास्तविक हैं।
              हजरत मोहम्मद ने एक ऐसी न्याय व्यवस्था की नींव डाली जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को इंसाफ मिलना जरूरी था। किसी को भी नस्ल, जाति, धर्म या धन के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी गई। हजरत मोहम्मद ने औरतों को जीने का हक दिलाया।
              समाज में उन्हें सम्मानजनक मुकाम दिलाया। उनको खानदान की मलिका करार दिया। उनकी शिक्षा की महानता बताई। हजरत मोहम्मद ने फरमाया, जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें अच्छी तालीम व तर्बियत देकर उनकी शादी कर दी और उनसे अच्छा सुलूक किया, उसके लिए जन्नत के द्वार खुलें हैं।
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