• ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
    कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

    ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
    अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

    हँसो आज इतना कि इस शोर में
    सदा सिसकियों की सुनाई न दे

    अभी तो बदन में लहू है बहुत
    कलम छीन ले रोशनाई न दे

    मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
    ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

    ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
    असीरों को ऐसी रिहाई न दे

    मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
    जहाँ से मदीना दिखाई न दे

    मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
    क़लम छीन ले रोशनाई न दे

    ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
    रहे सामने और दिखाई न दे